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पहलू खान के आरोपियों को क्यों छोड़ा, कोर्ट और पुलिस ने खुद कबूला चौका देने वाला सच

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पहलू खान मामले के छह आरोपियों को बुधवार को बरी करने वाले राजस्थान की अदालत ने अपने ही फैसले पर आश्चर्य जताया है। कोर्ट को मजबूरन सबूतों के आभाव में आकर यह फैसला लेना पड़ा था। कोर्ट ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि जिन वीडियो और तस्वीरों के आधार पर आरोपियों की पहचान की गई थी, उन्हें अदालत में पेश नहीं किया गया। बरी किए गए आरोपियों में विपिन यादव, रविंद्र कुमार, कालूराम, दयानंद, योगेश कुमार और भीम राठी शामिल थे। 

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, अतिरिक्त जिला जज सरिता स्वामी ने अपने फैसले में कहा कि खान, उनके बेटों और उनके साथियों द्वारा पुलिस को दिए गए शुरुआती बयान में छह आरोपियों के नाम नहीं थे। आरोपियों पर केवल तस्वीरों और मोबाइल फोन पर बनाए गए वीडियो के आधार पर आरोप लगाए गए थे। 


अदालत ने अपने फैसले में कहा, ‘इस तरह से इस मामले में अभियोजन के अनुसार, मोबाइल द्वारा घटना के बनाए गए दो वीडियो के आधार पर आरोपियों की पहचान की गई। लेकिन हैरानी की बात है कि रमेश सिनसिनवार द्वारा हासिल किए वीडियो और उससे तैयार तस्वीरों को रिकॉर्ड में नहीं लिया गया था और न ही वह मोबाइल जब्त किया गया था, जिसमें वीडियो था’ 

बता दें कि, रमेश सिनसिनवार अलवर जिले के बहरोड़ पुलिस स्टेशन में तत्कालीन एसएचओ और इस मामले के पहले जांच अधिकारी थे। अदालत में दिए गए अपने बयान में सिनसिनवार ने कहा कि उन्हें एक मुखबिर से एक वीडियो मिला था, लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने वीडियो को फॉरेंसिक लैब में नहीं भेजा था। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि आरोपी के कॉल डिटेल के लिए उन्हें नोडल अधिकारी से प्रमाणपत्र नहीं मिला था और न ही उन्हें किसी से सत्यापित किया गया था। उसने अदालत को बताया कि उन्होंने अभियुक्तों से बिल और सिम आईडी जैसे कोई दस्तावेज नहीं लिए हैं, जिससे पता चल सके कि वे मोबाइल आरोपियों के थे। इसके साथ उनके फोन भी जब्त नहीं किए गए थे। 

पहलु खान परिवार के वकील कासिम खान ने कहा, ‘वीडियो साक्ष्य अदालत में स्वीकार्य नहीं थे क्योंकि उन्हें अदालत पेश करने के लिए जिन प्रक्रियाओं के पालन की आवश्यकता थी पुलिस द्वारा जांच के दौरान उनका पालन नहीं किया गया। अगर पुलिस अपना काम अच्छे से करती तो वह आरोपी बरी नहीं होते। इतने अहम् सबूतों को पुलिस ने नज़रअंदाज़ कर दिया। बुधवार को दिए गए अपने फैसले में अदालत ने सभी छह आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया. हालांकि, इस दौरान अदालत ने राजस्थान पुलिस की ओर से जांच में बरती गई गंभीर खामियों को जिम्मेदार ठहराया। 

इस मामले में एफआईआर दर्ज करने में की गई देरी पर भी पुलिस को फटकार लगाई और कहा कि इससे जांच अधिकारी की ओर से गंभीर लापरवाही का पता चलता है। अदालत का फैसला आने के बाद राज्य सरकार ने कहा कि वह इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देगी। 

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